Wednesday, July 15, 2020

आपका कौनसा चक्र बिगडा है ?

(1) मूलाधार चक्र , मूल=जड़, आधार = नींव
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चक्र के देवता- भगवान गणेश
चक्र की देवी – डाकिनी जिसके चार हाँथ हैं, लाल आँखे हैं।
तत्व – पृथ्वी
रंग – गहरा लाल
बीज मंत्र –  ‘ लं ‘

मूलाधार चक्र अनुत्रिक के आधार में स्थित है, यह मानव चक्रों में सबसे पहला है। इसका समान रूप मंत्र लम (LAM) है। मूलाधार चक्र पशु और मानव चेतना के मध्य सीमा निर्धारित करता है। इसका संबंध अचेतन मन से है, जहां पिछले जीवनों के कर्म और अनुभव संग्रहीत होते हैं। अत: कर्म सिद्धान्त के अनुसार यह चक्र हमारे भावी प्रारब्ध का मार्ग निर्धारित करता है। यह चक्र हमारे व्यक्तित्व के विकास की नींव भी है।

मूलाधार चक्र की सकारात्मक उपलब्धियां स्फूर्ति, उत्साह और विकास हैं। नकारात्मक गुण हैं सुस्ती, निष्क्रियता, आत्म-केन्द्रित (स्वार्थी) और अपनी शारीरिक इच्छाओं द्वारा प्रभावित होना है।

इस चक्र का देवता भगवान शिव है जो पशुपति महादेव के रूप में ध्यानावस्थित है - जिसका अर्थ है कि निम्नस्तरीय गुणों पर नियंत्रण कर लिया गया है।

मूलाधार चक्र के सांकेतिक चित्र में चार पंखुडिय़ों वाला एक कमल है। ये चारों मन के चार कार्यों : मानस, बुद्धि, चित्त और अहंकार का प्रतिनिधित्व करते हैं -यह सभी इस चक्र में उत्पन्न होते हैं।

जीवन चेतना है और चेतना उत्क्रांति का प्रयास करती है। मूलाधार चक्र के चिह्न की ऊर्जा और ऊपर उठने की गति दोनों ही विशेषता होती हैं। चक्र का रंग लाल है जो शक्ति का रंग है। शक्ति का अर्थ है ऊर्जा, गति, जाग्रति और विकास। लाल सुप्त चेतना को जाग्रत कर सक्रिय, सतर्क चेतना का प्रतीक है। मूलाधार चक्र का एक दूसरा प्रतीक चिह्न उल्टा त्रिकोण है, जिसके दो अर्थ हैं। एक अर्थ बताता है कि ब्रह्माण्ड की ऊर्जा खिंच रही है और नीचे की ओर इस तरह आ रही जैसे चिमनी में जा रही हो। अन्य अर्थ चेतना के ऊर्ध्व प्रसार का द्योतक है। त्रिकोण का नीचे कीओर इंगित करने वाला बिन्दु प्रारंभिक बिन्दु है, बीज है, और त्रिकोण के ऊपर की ओर जाने वाली भुजाएं मानव चेतना की ओर चेतना के प्रगटीकरण के द्योतक हैं।

मूलाधार चक्र का प्रतिनिधित्व करने वाला पशु 7 सूंडों वाला एक हाथी है। हाथी बुद्धि का प्रतीक है। 7 सूंडें पृथ्वी के 7 खजानों (सप्तधातु) की प्रतीक हैं। मूलाधार चक्र का तत्त्व पृथ्वी है, हमारी आधार और 'माता', जो हमें ऊर्जा और भोजन उपलब्ध कराती है।

आधार चक्र का ही एक दूसरा नाम मूलाधार चक्र भी है। इसके  बिगड़ने  से वीरता, धन , समृधि , आत्मबल , शारीरिकबल , रोजगार , कर्मशीलता, घाटा, असफलता रक्त एवं हड्डी के रोग ,कमर व पीठ में दर्द, आत्महत्या के विचार, डिप्रेशन, कैंसर अदि होता है।

चक्र जगाने की विधि
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 मनुष्य तब तक पासुवत है, जब तक कि वह इस चक्र में जी रहा है इसलिए भोग, निद्रा, और सम्भोग पर सयंम रखते हुए भगवान श्री गणेश को प्रणाम कर के ‘ लं ‘ मन्त्र के उच्चारण के साथ इस चक्र पर लगातार ध्यान लगाने से यह चक्र जागृत होने लगता है। इसको जागृत करने का दूसरा नियम है यम और नियम का पालन करते हुए साक्षी भाव में रहना।

इसका प्रभाव
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इस चक्र के जागृत होनेपर व्यक्ति के भीतर  वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जागृत हो जाता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरुरी है।

(2) स्वाधिष्ठान चक्र, स्व = आत्मा, स्थान=जगह
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चक्र के देवता- भगवान विष्णु
वस्त्र - चमकदार सुन्दर पिला रंग
चक्र की देवी- देवी राकनी ( वनस्पति की देवी ) नीले कमल की तरह
तत्व – जल
रंग – सिंदूरी, कला, सफ़ेद
बीज मंत्र – ‘ वं ‘

स्वाधिष्ठान चक्र त्रिकास्थि (पेडू के पिछले भाग की पसली) के निचले छोर में स्थित है। इसका मंत्र वम (ङ्क्ररू) है।

स्वाधिष्ठान चक्र हमारे विकास के एक-दूसरे स्तर का संकेतक है। चेतना की शुद्ध, मानव चेतना की ओर उत्क्रांति का प्रारंभ स्वाधिष्ठान चक्र में होता है। यह अवचेतन मन का वह स्थान है जहां हमारे अस्तित्व के प्रारंभ में गर्भ से सभी जीवन अनुभव और परछाइयां संग्रहीत रहती हैं। मूलाधार चक्र हमारे कर्मों का भंडारग्रह है तथापि इसको स्वाधिष्ठान चक्र में सक्रिय किया जाता है।

स्वाधिष्ठान चक्र की जाग्रति स्पष्टता और व्यक्तित्व में विकास लाती है। किन्तु ऐसा हो, इससे पहले हमें अपनी चेतना को नकारात्मक गुणों से शुद्ध कर लेना चाहिए। स्वाधिष्ठान चक्र के प्रतीकात्मक चित्र ६ पंखुडिय़ों वाला एक कमल है। ये हमारे उन नकारात्मक गुणों को प्रकट करते हैं, जिन पर विजय प्राप्त करनी है - क्रोध, घृणा, वैमनस्य, क्रूरता, अभिलाषा और गर्व। अन्य प्रमुख गुण जो हमारे विकास को रोकते हैं, वे हैं आलस्य, भय, संदेह, बदला, ईर्ष्या और लोभ।

स्वाधिष्ठान चक्र का प्रतीक पशु मगर (मगरमच्छ) है। यह सुस्ती, भावहीनता और खतरे का प्रतीक है जो इस चक्र में छिपे हैं। स्वाधिष्ठान चक्र का तत्त्व है जल, यह भी छुपे हुए खतरे का प्रतीक है। जल कोमल और लचीला है, किन्तु यह जब नियंत्रण से बाहर हो जाता है तो भयंकर शक्तिशाली भी है। स्वाधिष्ठान चक्र के साथ यही विचित्रता है। जब अवचेतन से चेतनावस्था की ओर नकारात्मक भावनाएं उत्पन्न होती हैं, तब हम पूर्णरूप से संतुलन खो सकते हैं।

इस चक्र का देवता ब्रह्मा सृष्टिकर्ता और उनकी पुत्री सरस्वती बुद्धि और ललितकलाओं की देवी है। स्वाधिष्ठान का रंग संतरी, सूर्योदय का रंग है जो उदीयमान चेतना का प्रतीक है। संतरी रंग सक्रियता और शुद्धता का रंग है। यह सकारात्मक गुणों का प्रतीक है और इस चक्र में प्रसन्नता, निष्ठा, आत्मविश्वास और ऊर्जा जैसे गुण पैदा होते हैं।

 इसके बिगड़ने पर क्रूरता,गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, नपुंसकता ,बाँझपन ,मंद्बुधिता ,मूत्राशय  और गर्भाशय  के रोग ,अध्यात्मिक  सिद्धी में बाधा   बैभव के आनंद में कमी  अदि होता है।

चक्र जागने की विधि
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जीवन में मनोरंजन जरुरी है, लेकिन मनोरंजन की आदत नहीं। मनोरंजन भी व्यक्ति की चेतना को वेहोशी में धकेलता है । फिल्म सच्ची नहीं होती लेकिन उससे जुड़कर आप जो अनुभव करते हैं वह आप के बेहोश जीवन जीने का प्रमाण है। नाटक और मनोरंजन सच नहीं होते । इस चक्र पर ‘ वं ‘ मन्त्र के साथ ध्यान करने से यह चक्र जागृत होने लगता है।

प्रभाव
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इसके जागृत होने पर क्रूरता, गर्व आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वाश आदि दुर्गुणों का नाश होता है तथा क्रिया शक्ति की प्राप्ति होती है। सिद्धयां प्राप्त करने के लिए जरुरी है कि उक्त सारे दुर्गुण समाप्त हों।

(3) मणिपुर चक्र, मणि= गहना, पुर= स्थान, शहर
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देवता- रूद्र ( मतान्तर से इंद्र, लक्ष्मी ) तीन आँखों वाले सरीर में विभूति सिंदूरी वर्ण
देवी- लाकिनी सब का उपकार करने वाली |
रंग-  काला
वस्त्र- पिले हैं
देवी- आभूषण से सजी अमृतपान के कारण आनंदमय हैं।
तत्व- अग्नि
रंग- पीला
बीज मंत्र- ‘ रं ‘

मणिपुर चक्र नाभि के पीछे स्थित है। इसका मंत्र है रम। जब हमारी चेतना मणिपुर चक्र में पहुंच जाती है तब हम स्वाधिष्ठान के निषेधात्मक पक्षों पर विजय प्राप्त कर लेते हैं। मणिपुर चक्र में अनेक बहुमूल्य मणियां हैं जैसे स्पष्टता, आत्मविश्वास, आनन्द, आत्म भरोसा, ज्ञान, बुद्धि और सही निर्णय लेने की योग्यता जैसे गुण।

मणिपुर चक्र का रंग पीला है। मणिपुर का प्रतिनिधित्व करने वाला पशु मेढ़ा (मेष)है। इसका अनुरूप तत्त्व अग्नि है, इसलिए यह 'अग्नि' या 'सूर्य केन्द्र' के नाम से भी जाना जाता है। शरीर में अग्नि तत्त्व सौर मंडल में गर्मी के समान ही प्रकट होता है। मणिपुर चक्र स्फूर्ति का केन्द्र है। यह हमारे स्वास्थ्य को सुदृढ़ और पुष्ट करने के लिए हमारी ऊर्जा नियंत्रित करता है। इस चक्र का प्रभाव एक चुंबक की भांति होता है, जो ब्रह्माण्ड से प्राण को अपनी ओर आकर्षित करता है।

पाचक अग्नि के स्थान के रूप में, यह चक्र अग्न्याशय और पाचक अवयवों की प्रक्रिया को विनियमित करता है। इस केन्द्र में अवरोध कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं, जैसे पाचन में खराबियां, परिसंचारी रोग, मधुमेह और रक्तचाप में उतार-चढ़ाव। तथापि, एक दृढ़ और सक्रिय मणिपुर चक्र अच्छे स्वास्थ्य में बहुत सहायक होता है और बहुत सी बीमारियों को रोकने में हमारी मदद करता है। जब इस चक्र की ऊर्जा निर्बाध प्रवाहित होती है तो प्रभाव एक शक्तिपुंज के समान, निरन्तर स्फूर्ति प्रदान करने वाला होता है - संतुलन और शक्ति बनाए रखता है।

मणिपुर चक्र के प्रतीक चित्र में दस पंखुडिय़ों वाला एक कमल है। यह दस प्राणों, प्रमुख शक्तियों का प्रतीक है जो मानव शरीर की सभी प्रक्रियाओं का नियंत्रण और पोषण करती है। मणिपुर का एक अतिरिक्त प्रतीक त्रिभुज है, जिसका शीर्ष बिन्दु नीचे की ओर है। यह ऊर्जा के फैलाव, उद्गम और विकास का द्योतक है। मणिपुर चक्र के सक्रिय होने से मनुष्य नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्त होता है और उसकी स्फूर्ति में शुद्धता और शक्ति आती है।

इस चक्र के देवता विष्णु और लक्ष्मी हैं। भगवान विष्णु उदीयमान मानव चेतना के प्रतीक हैं, जिनमें पशु चारित्रता बिल्कुल नहीं है। देवी लक्ष्मी प्रतीक है-भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि की, जो भगवान की कृपा और आशीर्वाद से फलती-फूलती है।

इसके बिगड़ने पर तृष्णा, ईष्र्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह, अधूरी सफलता , गुस्सा , चिड़चिड़ापन, नशाखोरी, तनाव , शंकालु प्रवृति, कई तरह की बिमारिया ,दवावो का  काम न करना ,अज्ञात भय ,चहरे का तेज गायब , धोखाधड़ी, डिप्रेशन, उग्रता , हिंसा, दुश्मनी , अपयश ,अपमान ,आलोचना ,बदले की भावना , एसिडिटी , ब्लडप्रेशर, शुगर, थायोरायड,सिर एवं शरीर के दर्द, किडनी ,लीवर ,केलेस्ट्राल,खून का रोग आदि इसके बिगड़ने का मतलब जिंदगी का  बिगड़ जाना ।

चक्र जागृत करने की विधि
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आप के कार्य को सकारात्मक आयाम देने के लिए अग्नि मुद्रा में बैठें अनामिका ऊँगली को मोड़कर अंगुष्ठ के मूल में लगाएं अब इस चक्र पर ध्यान लगाएं। पेट से स्वास लें ।

प्रभाव
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इसके सक्रीय होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कषाय-कल्मष दूर हो जाते हैं। यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए आत्मवान का होना बहोत जरुरी है। आत्मवान होने के लिए यह अनुभव करना जरुरी है कि आप शरीर नहीं आत्मा हैं। आत्मशक्ति, आत्मबल, और आत्मसम्मान के साथ जीवन का कोई भी लक्ष्य दुर्लभ नहीं ।

(4) अनाहत चक्र, अनाहत नाद = शाश्वत ध्वनि ॐ ध्वनि
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देवता – ईश्  श्री जगदम्बा ( शिव-शक्ति )
देवी- काकनी सर्वजन हितकारी देवी का रंग पीला है, तीन आँखे हैं चार हाँथ हैं।
रंग- हरा, नीला, चमकदार, किरमिजी
तत्व- वायु
बीज मंत्र- ‘ यं ‘

अनाहत चक्र हृदय के निकट सीने के बीच में स्थित है। इसका मंत्र यम (YAM) है। अनाहत चक्र का रंग हलका नीला, आकाश का रंग है। इसका समान रूप तत्त्व वायु है। वायु प्रतीक है-स्वतंत्रता और फैलाव का। इसका अर्थ है कि इस चक्र में हमारी चेतना अनंत तक फैल सकती है।

अनाहत चक्र आत्मा की पीठ (स्थान) है। अनाहत चक्र के प्रतीक चित्र में बारह पंखुडिय़ों का एक कमल है। यह हृदय के दैवीय गुणों जैसे परमानंद, शांति, सुव्यवस्था, प्रेम, संज्ञान, स्पष्टता, शुद्धता, एकता, अनुकंपा, दयालुता, क्षमाभाव और सुनिश्चिय का प्रतीक है। तथापि, हृदय केन्द्र भावनाओं और मनोभावों का केन्द्र भी है। इसके प्रतीक छवि में दो तारक आकार के ऊपर से ढाले गए त्रिकोण हैं। एक त्रिकोण का शीर्ष ऊपर की ओर संकेत करता है और दूसरा नीचे की ओर। जब अनाहत चक्र की ऊर्जा आध्यात्मिक चेतना की ओर प्रवाहित होती है, तब हमारी भावनाएं भक्ति, शुद्ध, ईश्वर प्रेम और निष्ठा प्रकट करती है। तथापि यदि हमारी चेतना सांसारिक कामनाओं के क्षेत्र में डूब जाती है, तब हमारी भावनाएं भ्रमित और असंतुलित हो जाती हैं। तब होता यह है कि इच्छा, द्वेष-जलन, उदासीनता और हताशा भाव हमारे ऊपर छा जाते हैं।

अनाहत, ध्वनि (नाद) की पीठ है। इस चक्र पर एकाग्रता व्यक्ति की प्रतिभा को लेखक या कवि के रूप में विकसित कर सकती है। अनाहत चक्र से उदय होने वाली दूसरी शक्ति संकल्प शक्ति है जो इच्छा पूर्ति की शक्ति है। जब आप किसी इच्छा की पूर्ति करना चाहते हैं, तब अपने हृदय में इसे एकाग्रचित्त करें। आपका अनाहत चक्र जितना अधिक शुद्ध होगा उतनी ही शीघ्रता से आपकी इच्छा पूरी होगी।

अनाहत चक्र का प्रतीक पशु कुरंग (हिरण) है जो अत्यधिक ध्यान देने और चौकन्नेपन का हमें स्मरण कराता है। इस चक्र के देवता शिव और पार्वती हैं, जो चेतना और प्रकृति के प्रतीक हैं। इस चक्र में दोनों को सुव्यवस्था में एक हो जाना चाहिए।

इसके बिगड़ने पर लिप्सा, कपट, तोड़ -फोड़, कुतर्क, चिन्ता, नफरत, प्रेम में असफलता ,प्यार में धोखा , अकेलापन, अपमान, मोह, दम्भ, अपनेपन में कमी ,मन में उदासी , जीवन में विरानगी ,सबकुछ होते हुए भी बेचनी, छाती में दर्द , साँस लेने में दिक्कत , सुख का अभाव, ह्रदय व फेफड़े के रोग,केलोस्ट्राल में बढ़ोतरी अदि  ।

चक्र को जागृत करने की विधि
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ह्रदय पर संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जागृत होने लगता है। खासकर रात्रि  को सोने से पूर्व इस चक्र पर ध्यान लगाने से यह अभ्यास से जागृत होने लगता है और शुष्मना इस चक्र को भेदकर ऊपर की ओर उठने लगती है।

प्रभाव
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इसके जागृत होने पर लिप्सा, कपट, हिंसा, कुतर्क, चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और अहंकार समाप्त हो जाते हैं। तथा प्रेम और संवेदना  मन में जाग्रत होती हैं तथा मन की  इच्छा पूर्ण होती है। ज्ञान स्वतः ही प्रकट होने लगता है। व्यक्ति अत्यंत आत्मविश्वस्त, सुरक्षित, चारित्रिक, रूप से जिम्मेदार, एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता है। ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितैसी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता है।

(5) विशुद्धि चक्र  विष = जहर, अशुद्धता शुद्धि = अवशिष्ट निकालना
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देवता – सदाशिव रंग सफेद, तीन आँखे, पञ्च मुख, दस भुजाएं
देवी – सकिनी वस्त्र पिले चन्द्रमां के सागर से भी पवित्र तत्व
रंग – बैगनी
तत्व- आकाश
बीज मंत्र – ‘ हं ‘

विशुद्धि चक्र कंठ में स्थित है। इसका मंत्र हम है। विशुद्धि का रंग बैंगनी है। इस चक्र में हमारी चेतना पांचवें स्तर पर पहुंच जाती है। इसका समानरूप तत्त्व आकाश (अंतरिक्ष) है। हम इसका अनुवाद 'ईश्वर' (लोकोत्तर) भी कर सकते हैं, इसका अभिप्राय यह है कि यह स्थान ऊर्जा से भरा रहना चाहिए। विशुद्धि चक्र उदान प्राण का प्रारंभिक बिन्दु है। श्वसन के समय शरीर के विषैले पदार्थों को शुद्ध करना इस प्राण की प्रक्रिया है। इस मुख्य कार्य के कारण ही इस चक्र का नाम व्युत्पन्न है। शुद्धिकरण न केवल शारीरिक स्तर पर ही होता है अपितु मनोभाव और मन के स्तर पर भी होता है। जीवन में हमने जिन समस्याओं और दुखद अनुभवों को 'निगल लिया' और भीतर दबा लिया, वे तब तक हमारे अवचेतन मन में बने रहते हैं, जब तक कि हम उनका सामना नहीं करते और बुद्धि से उनका समाधान नहीं कर देते।

विशुद्धि चक्र का देवता सृष्टिकर्ता, ब्रह्मा है, जो चेतना का प्रतीक है। ध्यान में जब व्यक्ति की चेतना आकाश में समाहित हो जाती है, हमें ज्ञान और बुद्धि प्राप्त होती है। विशुद्धि चक्र का प्रतीक पशु एक सफेद हाथी है। हमें इसके चित्र में एक चन्द्रमा की छवि भी दिखती है जो मन का प्रतीक है।

विशुद्धि चक्र प्रसन्नता की अनगिनत भावनाओं और स्वतंत्रता को दर्शाता है जो हमारी योग्यता और कुशलता को प्रफुल्लित करता है। विकास के इस स्तर के साथ, एक स्पष्ट वाणी, गायन और भाषण की प्रतिभा के साथ-साथ एक संतुलित और शांत विचार भी होते हैं।

जब तक यह चक्र पूर्ण विकसित नहीं हो जाता, कुछ खास कठिनाइयां अनुभव की जा सकती हैं। विशुद्धि चक्र में रुकावट चिन्ता की भावनाएं, स्वतंत्रता का अभाव, बंधन, टेंटुए और कंठ की समस्याएं उत्पन्न करता है। कुछ शारीरिक कठिनाइयों, जैसे सूजन और वाणी में रुकावट, का भी सामना करना पड़ सकता है।

 ये उन सोलह शक्तिशाली कलाओं (योग्यताओं) का प्रतीक है, जिनसे एक मानव विकास कर सकता है। चूंकि विशुद्धि चक्र ध्वनि का केन्द्र है, संख्या सोलह संस्कृत के सोलह स्वरों की भी प्रतीक है। इस केन्द्र में वाक्सिद्धि अनुभव की जा सकती है, जो एक ऐसी असाधारण योग्यता है कि व्यक्ति जो भी बोले वह सत्य सिद्ध हो जाए।

कण्ठ में विशुद्धि चक्र यह सरस्वती का स्थान है । यह सोलह पंखुरियों वाला है। यहाँ सोलह कलाएँ सोलह विभूतियाँ विद्यमान है, इसके बिगड़ने पर वाणी दोष ,अभिब्यक्ति में कमी ,गले , नाक, कान,दात, थाई रायेड, आत्मजागरण में  बाधा  आती है।

चक्र को जागृत करने की विधि
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कंठ में संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जागृत होने लगता है। और सुषुम्ना इस चक्र को भेदकर ऊपर की ओर उठने लगती है।

प्रभाव
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इसके जागृत होने पर सोलह कलाओं और सोलह विभूतियों का ज्ञान हो जाता है। इसके जगृत होने से व्यक्ति अपने व्यवहार में अत्यन्त सत्यनिष्ठ, कुशल और मधुर हो जाता है और व्यर्थ के तर्क-वितर्क  में नहीं फंसता, बिना अहम् को बढ़ावा दिए परिस्थितियों पर नियंत्रण करने में वह अत्यन्त युक्ति कुशल हो जाता है।

(6) आज्ञाचक्र - आज्ञा =आदेश, ज्ञान
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रंग – सफेद
बीज मंत्र – ‘ ॐ ‘

आज्ञा चक्र मस्तक के मध्य में, भौंहों के बीच स्थित है। इस कारण इसे "तीसरा नेत्र” भी कहते हैं। आज्ञा चक्र स्पष्टता और बुद्धि का केन्द्र है। यह मानव और दैवी चेतना के मध्य सीमा निर्धारित करता है। यह ३ प्रमुख नाडिय़ों, इडा (चंद्र नाड़ी) पिंगला (सूर्य नाड़ी) और सुषुम्ना (केन्द्रीय, मध्य नाड़ी) के मिलने का स्थान है। जब इन तीनों नाडिय़ों की ऊर्जा यहां मिलती है और आगे उठती है, तब हमें समाधि, सर्वोच्च चेतना प्राप्त होती है।

इसका मंत्र है ॐ। आज्ञा चक्र का रंग सफेद है। इसका तत्व मन का तत्व, अनुपद तत्त्व है। इसका चिह्न एक श्वेत शिवलिंगम्, सृजनात्मक चेतना का प्रतीक है। इसमें और बाद के सभी चक्रों में कोई पशु चिह्न नहीं है। इस स्तर पर केवल शुद्ध मानव और दैवी गुण होते हैं।

आज्ञा चक्र के प्रतीक चित्र में दो पंखुडिय़ों वाला एक कमल है जो इस बात का द्योतक है कि चेतना के इस स्तर पर 'केवल दो', आत्मा और परमात्मा (स्व और ईश्वर) ही हैं। आज्ञा चक्र की देव मूर्तियों में शिव और शक्ति एक ही रूप में संयुक्त हैं। इसका अर्थ है कि आज्ञा चक्र में चेतना और प्रकृति पहले ही संयुक्त है, किन्तु अभी भी वे पूर्ण ऐक्य में समाए नहीं हैं।

इस चक्र के गुण हैं - एकता, शून्य, सत, चित्त और आनंद। 'ज्ञान नेत्र' भीतर खुलता है और हम आत्मा की वास्तविकता देखते हैं - इसलिए 'तीसरा नेत्र' का प्रयोग किया गया है जो भगवान शिव का द्योतक है। आज्ञा चक्र 'आंतरिक गुरू' की पीठ (स्थान) है। यह द्योतक है बुद्धि और ज्ञान का, जो सभी कार्यों में अनुभव किया जा सकता है। उच्चतर, नैतिक विवेक के तर्कयुक्त शक्ति के समक्ष अहंकार आधारित प्रतिभा समर्पण कर चुकी है। तथापि, इस चक्र में एक रुकावट का उल्टा प्रभाव है जो व्यक्ति की परिकल्पना और विवेक की शक्ति को कम करता है, जिसका परिणाम भ्रम होता है।

यहाँ '?' उद्गीय, हूँ, फट, विषद, स्वधा स्वहा, सप्त स्वर आदि का निवास है । इसके बिगड़ने पर एकाग्रता ,जीने की चाह,निर्णय की सक्ति, मानसिक सक्ति,सफलता की राह आदि इसके बिगड़ने मतलब सबकुछ बिगड़ जाने का खतरा ।   

 चक्र को जगृत करने की विधि
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भृकुटि के मध्य ( भौहों के बीच ) ध्यान लगाते हुए साक्षी भाव भाव में रहने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।

प्रभाव
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यहाँ अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं। इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से ये सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं। और व्यक्ति एक सिद्धपुरुष बन जाता है।
   
(7). बिंदु चक्र बिंदु = नोंक, बूँद
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बिन्दु चक्र सिर के शीर्ष भाग पर केशों के गुच्छे के नीचे स्थित है। बिन्दु चक्र के चित्र में २३ पंखुडिय़ों वाला कमल होता है। इसका प्रतीक चिह्न चन्द्रमा है, जो वनस्पति की वृद्धि का पोषक है। भगवान कृष्ण ने कहा है : ''मैं मकरंद कोष चंद्रमा होने के कारण सभी वनस्पतियों का पोषण करता हूं" (भगवद्गीता १५/१३)। इसके देवता भगवान शिव हैं, जिनके केशों में सदैव अर्धचन्द्र विद्यमान रहता है। मंत्र है शिवोहम्(शिव हूं मैं)। यह चक्र रंगविहीन और पारदर्शी है।

बिन्दु चक्र स्वास्थ्य के लिए एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र है, हमें स्वास्थ्य और मानसिक पुनर्लाभ प्राप्त करने की शक्ति प्रदान करता है। यह चक्र नेत्र दृष्टि को लाभ पहुंचाता है, भावनाओं को शांत करता है और आंतरिक सुव्यवस्था, स्पष्टता और संतुलन को बढ़ाता है। इस चक्र की सहायता से हम भूख और प्यास पर नियंत्रण रखने में सक्षम हो जाते हैं, और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक खाने की आदतों से दूर रहने की योग्यता प्राप्त कर लेते हैं। बिन्दु पर एकाग्रचित्तता से चिन्ता एवं हताशा और अत्याचार की भावना तथा हृदय दमन से भी छुटकारा मिलता है।

बिन्दु चक्र शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, स्फूर्ति और यौवन प्रदान करता है, क्योंकि यह "अमरता का मधुरस" (अमृत) उत्पन्न करता है। यह अमृतरस साधारण रूप से मणिपुर चक्र में गिरता है, जहां यह शरीर द्वारा पूरी तरह से उपयोग में लाए बिना ही जठराग्नि से जल जाता है। इसी कारण प्राचीन काल में ऋषियों ने इस मूल्यवान अमृतरस को संग्रह करने का उपाय सोचा और ज्ञात हुआ कि इस अमृतरस के प्रवाह को जिह्वा और विशुद्धि चक्र की सहायता से रोका जा सकता है। जिह्वा में सूक्ष्म ऊर्जा केन्द्र होते हैं, इनमें से हरेक का शरीर के अंग या क्षेत्र से संबंध होता है। उज्जाई प्राणायाम और खेचरी मुद्रा योग विधियों में जिह्वा अमृतरस के प्रवाह को मोड़ देती है और इसे विशुद्धि चक्र में जमा कर देती है। एक होम्योपैथिक दवा की तरह सूक्ष्म ऊर्जा माध्यमों द्वारा यह संपूर्ण शरीर में पुन: वितरित कर दी जाती है, जहां इसका आरोग्यकारी प्रभाव दिखाई देने लगते हैं।
                                  
(8) सहस्रार चक्र सहस्रार =हजार, अनंत, असंख्य
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भगवान – शंकर
रंग – बैंगनी
बीज मंत्र – ॐ

सहस्रार चक्र सिर के शिखर पर स्थित है। इसे "हजार पंखुडिय़ों वाले कमल”, "ब्रह्म रन्ध्र” (ईश्वर का द्वार) या "लक्ष किरणों का केन्द्र” भी कहा जाता है, क्योंकि यह सूर्य की भांति प्रकाश का विकिरण करता है। अन्य कोई प्रकाश सूर्य की चमक के निकट नहीं पहुंच सकता। इसी प्रकार, अन्य सभी चक्रों की ऊर्जा और विकिरण सहस्रार चक्र के विकिरण में धूमिल हो जाते हैं।

सहस्रार चक्र में एक महत्त्वपूर्ण शक्ति - मेधा शक्ति है। मेधा शक्ति एक हार्मोन है, जो मस्तिष्क की प्रक्रियाओं जैसे स्मरण शक्ति, एकाग्रता और बुद्धि को प्रभावित करता है। योग अभ्यासों से मेधा शक्ति को सक्रिय और मजबूत किया जा सकता है।

सहस्रार चक्र का कोई विशेष रंग या गुण नहीं है। यह विशुद्ध प्रकाश है, जिसमें सभी रंग हैं। सभी नाडिय़ों की ऊर्जा इस केन्द्र में एक हो जाती है, जैसे हजारों नदियों का पानी सागर में गिरता है। यहां अन्तरात्मा शिव की पीठ है। सहस्रार चक्र के जाग्रत होने का अर्थ दैवी चमत्कार और सर्वोच्च चेतना का दर्शन है। जिस प्रकार सूर्योदय के साथ ही रात्रि ओझल हो जाती है, उसी प्रकार सहस्रार चक्र के जागरण से अज्ञान धूमिल (नष्ट) हो जाता है।

यह चक्र योग के उद्देश्य का प्रतिनिधित्व करता है- आत्म अनुभूति और ईश्वर की अनुभूति, जहां व्यक्ति की आत्मा ब्रह्मांड की चेतना से जुड़ जाती है। जिसे यह उपलब्धि मिल जाती है, वह सभी कर्मों से मुक्त हो जाता है और मोक्ष प्राप्त करता है - पुनर्जन्म और मृत्यु के चक्र से पूरी तरह स्वतंत्र। ध्यान में योगी निर्विकल्प समाधि (समाधि का उच्चतम स्तर) सहस्रार चक्र पर पहुंचता है, यहां मन पूरी तरह निश्चल हो जाता है और ज्ञान, ज्ञाता और ज्ञेय एक में ही समाविष्ट होकर पूर्णता को प्राप्त होते हैं।

सहस्रार चक्र में हजारों पंखुडिय़ों वाले कमल का खिलना संपूर्ण, विस्तृत चेतना का प्रतीक है। इस चक्र के देवता विशुद्ध, सर्वोच्च चेतना के रूप में भगवान शिव है। इसका समान रूप तत्त्व आदितत्त्व, सर्वोच्च, आध्यात्मिक तत्त्व है। मंत्र वही है जैसा आज्ञा चक्र के लिए है-मूल जप ॐ।

शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथियों से सम्बन्ध रैटिकुलर एक्टिवेटिंग सिस्टम का अस्तित्व है । वहाँ से जैवीय विद्युत का स्वयंभू प्रवाह उभरता है ।इसके बिगड़ने पर  मानसिक बीमारी,  अध्यात्मिकता का आभाव ,भाग्य  का साथ न देना अदि ।

चक्र को जगृत करने की विधि
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यह वास्तव में चक्र नहीं है बल्कि साक्षात तथा संपूर्ण परमात्मा और आत्मा है। जो व्यक्ति सहस्रार चक्र का जागरण करने में सफल हो जाते हैं, वे जीवन मृत्यु पर नियंत्रण कर लेते हैं सभी लोगों में अंतिम दो चक्र सोई हुई अवस्था में रहते हैं। अतः इस चक्र का जागरण सभी के बस में नहीं होता है। इसके लिए कठिन साधना व लंबे समय तक अभ्यास की आवश्यकता होती है। इसका मन्त्र ‘ॐ’ है।

प्रभाव
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शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण विद्युतीय और जैवीय विद्युत् का संग्रह है। यही मोक्ष का द्वार है।

Saturday, July 11, 2020

"ॐ जय शिव ओंकारा"

"ॐ जय शिव ओंकारा", यह वह प्रसिद्ध आरती है जो देश भर में शिव-भक्त नियमित गाते हैं..


लेकिन, बहुत कम लोग का ही ध्यान इस तथ्य पर जाता है कि, इस आरती के पदों में ब्रम्हा-विष्णु-महेश तीनो की स्तुति है..
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एकानन (एकमुखी, विष्णु) चतुरानन (चतुर्मुखी, ब्रम्हा) पंचानन (पंचमुखी, शिव) राजे..
हंसासन(ब्रम्हा) गरुड़ासन(विष्णु ) वृषवाहन (शिव) साजे..

दो भुज (विष्णु) चार चतुर्भुज (ब्रम्हा) दसभुज (शिव) ते सोहे..

अक्षमाला (रुद्राक्ष माला, ब्रम्हाजी ) वनमाला (विष्णु ) रुण्डमाला (शिव) धारी..
चंदन (ब्रम्हा ) मृगमद (कस्तूरी , विष्णु ) चंदा (शिव) भाले शुभकारी (मस्तष्क पर शोभा पाते है)..

श्वेताम्बर (सफेदवस्त्र, ब्रम्हा) पीताम्बर (पीले वस्त्र, विष्णु) बाघाम्बर (बाघ चर्म ,शिव) अगें..

ब्रम्हादिक (ब्राह्मण, ब्रह्मा) सनकादिक (सनक आदि, विष्णु ) भूतादिक (शिव ) संगे (साथ रहते हैं।)..

कर के मध्य कमंडल (ब्रम्हा) चक्र (विष्णु) त्रिशूल (शिव) धर्ता..
जगकर्ता (ब्रम्हा) जगहर्ता (शिव ) जग पालनकर्ता (विष्णु)..

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका (अविवेकी लोग इन तीनो को अलग अलग जानते हैं।)

प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका (सृष्टि के निर्माण के मूल ऊँकार नाद में ये तीनो एक रूप रहते है, आगे सृष्टि निर्माण, पालन और संहार हेतु त्रिदेव का रूप लेते हैं।.

Wednesday, July 30, 2008

Yamuna Satyagraha completes 365 days


Despite an apparent lack of interest among the citizenry of Delhi, committed activists led by waterman Rajendra Singh have been sitting in protest in the Indian capital for the past 365 days. Saving the Yamuna river from the ongoing construction of Commonwealth Games Village is their mission.


Motorists on National Highway-24 connecting Delhi with Ghaziabad often marvel at the frenetic construction work underway at the Commonwealth Games Village facing the Akshardham Temple on the eastern bank of Yamuna.

But few have noticed one of the longest-running environmental campaigns in Delhi, at a corner next to a smelling storm-water drain right outside the Village.

Known as, "The Yamuna Satyagraha", as the campaign is called, completed 365 weather-beaten days on Wednesday.


Under the Bamboo chhappar at the protest site, hang a few handwritten posters handed to kids from the nearby school on yamuna floodland. Rajender singh ji was sitting Close by a portrait of Mahatma Gandhi.


The campaign was launched to “save the oldest and most vital water resource of Delhi”, which environmentalists feel face grave threat to its survival from the construction work on the river's bed.

On Wednesday, well-wishers from all over india came over to commemorate the day. But on any given day, there are only a few protestors at the site, led by Master Baljitsingh ji holding together the fight for something so intrinsic to Delhi's sustenance.

These “water warriors”, as they call themselves, have been living out of the tent, playing host to mosquitoes at night and silently watching Delhi zoom by on the busy highway.

On this day, there was "Havan" by all supporters and like minded people. After that school kids planted trees in floodland, folowed by 'Lalit sharma, Ankita sharma, Amal sharma, Kuldeep gupta, chandan swaroop & Harinder nagar' the young satyagrahis. Mr. Ramesh sharma from Gandhi peace foundation, Mr. Diwan singh ji from National heritage first, Mr. Rajender singh ji Jal biradari also planted plants.

The decision was taken to fight with more power and with the new inflow of satyagrahis, Miss. Madhu kishwer, Mr. Roopchand nagar, Moulana ji , Mr. Sanjay sharma from Bharat punarninman dal & others.

Saturday, July 26, 2008

कुत्ते के प्रकार

कुत्ता सो जो कुत्ता पाले,
कुत्ता सो जो नानक वाले,

बहन घर भाई, सो कुत्ते दा कुत्ता;
सोरे घर ज्वाई, सो कुत्ते दा कुत्ता;
हिक कुत्ता तू ओवी भाल, सोरा फ़िरे ज्वाई नाल;
हिक कुत्ता तू ओवी लिख, बामण हो के बन गया सिख;
हिक कुत्ता ओवी भोंके, अपने ज्युंदया धन नूआं पुत्तरां नू सोपे ।


{बुजुर्गों की सीख }

Friday, July 25, 2008

समाधान



एक बूढा व्यक्ति था। उसकी दो बेटियां थीं। उनमें से एक का विवाह एक कुम्हार से हुआ और दूसरी का एक किसान के साथ।


एक बार पिता अपनी दोनों पुत्रियों से मिलने गया। पहली बेटी से हालचाल पूछा तो उसने कहा कि इस बार हमने बहुत परिश्रम किया है और बहुत सामान बनाया है। बस यदि वर्षा न आए तो हमारा कारोबार खूब चलेगा।


बेटी ने पिता से आग्रह किया कि वो भी प्रार्थना करे कि बारिश न हो।


फिर पिता दूसरी बेटी से मिला जिसका पति किसान था। उससे हालचाल पूछा तो उसने कहा कि इस बार बहुत परिश्रम किया है और बहुत फसल उगाई है परन्तु वर्षा नहीं हुई है। यदि अच्छी बरसात हो जाए तो खूब फसल होगी। उसने पिता से आग्रह किया कि वो प्रार्थना करे कि खूब बारिश हो।
एक बेटी का आग्रह था कि पिता वर्षा न होने की प्रार्थना करे और दूसरी का इसके विपरीत कि बरसात न हो। पिता बडी उलझन में पड गया। एक के लिए प्रार्थना करे तो दूसरी का नुक्सान। समाधान क्या हो ?


पिता ने बहुत सोचा और पुनः अपनी पुत्रियों से मिला। उसने बडी बेटी को समझाया कि यदि इस बार वर्षा नहीं हुई तो तुम अपने लाभ का आधा हिस्सा अपनी छोटी बहन को देना। और छोटी बेटी को मिलकर समझाया कि यदि इस बार खूब वर्षा हुई तो तुम अपने लाभ का आधा हिस्सा अपनी बडी बहन को देना।

चार पत्नियाँ

पुराने समय की बात है! एक व्यापारी की चार पत्नियाँ थी! वह चौथी पत्नी से सबसे ज्यादा प्रेम करता था! उसे सुंदर गहने देता और रोज उसके लिए स्वादिष्ट भोजन का प्रबंध करता! व्यापारी को अपनी तीसरी पत्नी से भी बेहद लगाव था! जब वह उसके साथ बाहर निकलती तो उसे बड़ा गर्व होता, हालाँकि उसे यह भी डर सताता था कि कहीं वह किसी और के साथ ना चली जाए! व्यापारी की दूसरी पत्नी उससे बेहद लगाव रखती थी! व्यापारी भी उसे चाहता था और जब भी कोई समस्या होती, तो वह उसी से सलाह मशविरा करता ! उसकी चौथी पत्नी उसके प्रति पूरी तरह से वफादार थी! वह उसका पूरा ख्याल रखती थी, लेकिन व्यापारी को उसकी परवाह ना थी! न ही कभी वह उसके गहरे प्यार को समझ पाया!
बहरहाल, एक बार व्यापारी बहुत बीमार पड़ गया! ऐसा पड़ा कि बिस्तर से ना उठ सका! जब उसे पता चला कि उसका अंत समय निकट आ गया है, तो उसे बड़ी हताशा हुई! उसने सोचा कि चार-चार पत्नियाँ होते हुए उसे अपनी अन्तिम यात्रा पर अकेले जाना पड़ रहा है! सो, उसने अपनी सबसे प्रिय चौथी पत्नी को बुलाया और उसे अपने साथ ले जाने की इच्छा जताई! पत्नी ने तपाक से कहा 'नही' और बाहर निकल गई! व्यापारी का दिल ही टूट गया! उसने तीसरी पत्नी से भी वही बात कही, तो उसने ना सिर्फ़ साफ़ इन्स्कार कर दिया, बल्कि यह भी कह दिया कि व्यापारी कि मौत के बाद वह किसी और से शादी कर लेगी! दूसरी पत्नी का जवाब था कि वह श्मशान घाट तक ही उसका साथ दे सकती है! अब व्यापारी ने पहली पत्नी को बुलाया! वह बहुत कमजोर नजर आ रही थी! लगता था कि उसे खाने को बहुत कम मिलता है! उसने जब पति की इच्छा सुनी, तो सहर्ष जवाब दिया कि मैं हमेशा आपके साथ चलूंगी, चाहे आप जहाँ भी रहे! उसकी बात सुनकर व्यापारी ने संतोष के साथ आँखे मूँद ली!

सबक के बगैर कहानी अधूरी रहेगी !
दरअसल, उस व्यापारी की तरह हम सभी की चार पत्नियाँ है! चौथी पत्नी हमारा शरीर है, जिसे हम खिलाते-पिलाते और सजाते-संवारते है, पर मौत के साथ ही उसका साथ भी छूट जाता है! तीसरी पत्नी हमारी धन-संपत्ति है, जो हमारे बाद किसी और की हो जानी है! दूसरी पत्नी यानी हमारे परिजन, जो हमसे लगाव तो रखते है, पर उनका साथ श्मशान तक ही रहता है! पहली पत्नी है हमारी अच्छाईयां, जो मौत के बाद ही हमसे जुड़ी रहती है! लेकिन खेद की बात है कि हम जीते जी अपनी अच्छाई पर बिल्कुल ध्यान नही देते और भौतिक सुख-सुविधाओ के लिए ही लगे रहते है!